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शिकायतें

शिकायतें

जिंदगी से मुझे

बहुत हैं लेकिन

जब नजरें घुमाकर

चारों तरफ देखती हूं

सड़क पर पड़े

बेघर लाचार गरीब

भूख से बेहाल

तड़पते लोगों को तो

शर्मिंदा होती हूं अंदर ही अंदर कि

या खुदा

तूने मुझे कितना कुछ दिया है फिर

शिकायत कैसी

इस बार बस माफ कर दे मुझे

फिर कभी मैं भूले से भी

शिकायत करने की

जुर्रत नहीं करूंगी।