in

विदाई

आसमान पर

दिख रहा है जो

बादल का टुकड़ा

वह कुछ पल ठहरा है बस यहां

इसके बाद चला जायेगा न जाने कहां कुछ नहीं ठहरता

कुछ नहीं रुकता

कुछ हाथ नहीं लगता

सब बिखर जाता है

हवाओं में खो जाता है

आंखों से ओझल हो जाता है

जमीं से उठकर

जो लोग चले जाते हैं

आसमान के पार

किसी अनंत यात्रा पर

उन्हें हम जमीन पर खड़े

लोग सिर्फ और सिर्फ

विदाई दे सकते हैं

उनके फिर कभी

आगमन के

स्वागत की तैयारी के बिना।