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वसंत का आखिरी फूल

फूल हो या

कोई पत्ता

मनुष्य हो या

कोई जीव

यह इस प्रकृति का नियम है कि

जो कोई जा रहा होता है

कोई फिर उसकी तरफ नहीं देखता

उसे तड़पने के लिए अकेला छोड़ दिया

जाता है

रोने दिया जाता है

उसे मरने के लिए छोड़ दिया जाता है

आखिरी क्षणों में कोई उसके साथ

रहना नहीं चाहता

उसके हाथों से सब छीनकर

उसकी दुनिया उजाड़कर

उसका दिल पूर्णतय खाली

करके

उसे किसी अंजान दिशा में

विदा कर दिया जाता है

यह अश्रुपूर्ण विदाई भी नहीं होती

कोई उसके साथ नहीं

होता

जब वह जिंदा होता है

तब भी नहीं

जब वह दम तोड़ रहा होता है

तब भी नहीं

जब वह मर चुका होता है

तब भी नहीं

मुझे समझ नहीं आता तो

कौन कब किसके साथ होता है

जिसे देखो वह

किसी के नितांत विरानेपन को

ठुकराकर

बहारों के स्वागत की तैयारी में

जुटे रहते हैं जबकि

हासिल उनसे भी कुछ नहीं

होता

मेरी प्रकृति तो पर

इस दुनिया के रीति रिवाजों से

बिल्कुल हटकर है

मैं पकड़ती ही उसे हूं

जो आखिरी हो

चाहे तो वह कोई क्षण हो

वसंत का आखिरी फूल हो

किसी की मृत्यु का

आखिरी स्मृति चिन्ह हो

मैंने उसे तब नहीं थामा तो

फिर उसे अपनाया कब था

दिल में गर किसी के प्यार की

महक होगी तो

वह बदस्तूर जारी रहती है

किसी के अंत के साथ

प्यार का अंत नहीं होता

बल्कि एक नई शुरुआत होती है

जो बेअंत होती है

वसंत का आखिरी फूल ही

किसी के जीवन में इतने वसंत

लाता है और इतने फूल खिलाता है कि

जिसका कभी कोई अंत नहीं होता।