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रिमझिम गिरे सावन: अदिति नारंग द्वारा रचित कविता

लो आया सावन  रिमझिम कर यूं बादल को घर घर बरसाने, 
काली घटा की चादर औढ कर, शीतल हवा की महिमा दर्शाने।

शीत फुहारें, रिमझिम गिरे सावन, मन कह दे कोई मधुर गीत-
सात सुरों को पिरो दो इक धागे में, दिल में बहे अविरल संगीत ।

मेघा का पानी छम-छम बरसे, हर मन एक नईं आस जगाए,
आंगन में बच्चे बूढ़े सब,  तल-तल कर पकवान को खाएं।

सोचा नही शायद अटल सत्य है, प्रकृति का नहीं है कोई सानी, 
कहां से आता है- फिर चला जाता है कहाँ यह बरसात का पानी ?

गरज गरज यह बादल अपना पानी यूं बरसाएं,
सूरज समुद्र वा हवा सब मिलकर इस जल को यात्रा करवाएं।

बरस बरस वर्षा गांव शहर झील  नदी सब भरदे,
धरती की इस माटी  गुल्लक को मानो प्राकृतिक कीमती जल से तरदे।

जमा पानी  रिस रिस कर जमीन के नीचे करे भूजल भंडार समृद्ध,
दिखता नहीं पर यह खज़ाना है अमूल्य, अनुपम और विस्तृत।

गर जल चक्र हम ठीक से समझें, बरसात आने पे उसे संभाले,
जलस्रोत सुरक्षित रखकर, तब कमी पानी की फिर आने ना पाए।