कांच के रंग बिरंगे
एक मोतियों की धार है
दिल में
बस मेरे तो
चारों तरफ
एक फसल सी लहराती
प्यार की बहार है
कसते क्यों हो
मुझे अपनी बाहों के पाश में
पिंजरे का ढक्कन खुला छोड़ दो
तुम्हें छोड़ कभी
मैं तो फिर भी
तुमसे दूर
होकर तुमसे जुदा
कहीं न भागूं
क्या तुम्हें मुझसे
प्यार की
ऐसी ही चाह और
इस तरह की ही दरकार है।