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रंगो की सौगात: ललिता वैतीश्वरन द्वारा रचित कविता

पलाश के फूल हुये हर्षित लाल वर्ण में
यौवन से फल फूल रहे लाज छिपाये पर्ण में
आसपास हर पुष्प खिल, कहे फैलाये अपना हाथ
ओ टेसू के फूल आज बिखरा रंगों की सौगात

दिशाओं में फुहार है, आकाश हुआ है सतरंगी
आज मानो नभ में इन्द्रधनुष है अतरंगी
उल्लास है , उन्माद हैं, सब हुये एक जात पात
आज घुल गया है चहूँ ओर प्रेम और अबीर का साथ

श्वेत चादरों को हटा, फाग गा रहा समीर
हलकी सिहरन से सन्दीप्त हो रहा ये मन अधीर
बिरहन की सुन ले अरज ,आज हो चितचोर से बात
लाल चुनर, धानी चूड़ियां, हो जाए जीवन भर का साथ

ओ दिव्य कांतिमान आकाश दे रंगों की सौगात
कभी न हो किसी के बिछोह से मन में आघात
लाल, हरे सिन्दूरी का बस हो जीवन में प्रभात
प्रेम के रंग बरसें सब पर जैसे कोई जलप्रपात