मेरा घर
मेरा कमरा
मेरे कमरे का दरवाजा
मेरे कमरे की खिड़की
उस पर पड़ा पर्दा
पर्दा गिरा दो तो
हो जाये अंधेरा
पर्दा उठा दो तो
हो जाये उजियारा
एक खिड़की बड़ी,
एक छोटी
जिसमें झांकने पर दिखती एक
मुख्य सड़क पर खुलती
एक पतली गली
गली में मंदिर का एक
पिछवाड़ा
उसमें तना हुआ खड़ा
एक घना नीम का पेड़ जो
गली में चलते हुए राहगीरों को
एक मां की ममता सी
छांव देता
रात के समय
गली से दिखती सड़क पर
झिलमिलाती वाहनों की या
सड़क किनारे जलती रोशनियां
मेरे कमरे में
मेरी मेज, मेरी कुर्सी,
मेरी डायरी, मेरा पेन,
मेरी किताबें, मेरे अखबार,
मेरा मोबाइल, मेरा बैग,
मेरे खाने पीने की खाद्य सामग्री,
मेरी पानी की बोतल
यह सब मेरा ही तो है
कहने को सब निर्जीव लेकिन
यह न हों तो
मैं हो जाऊंगी निर्जीव
यह निर्जीव ही मुझे देते जीवन
और बनाते सजीव
मेरे कमरे से जुड़ी मेरी बैठक
से बाहर लहलहाता दिखता
मेरा इकलौता बचा
अशोक का पेड़
यह निर्जीव सा खड़ा पर
है तो सजीव
यह सब निर्जीव वस्तुयें
मेरे जीने का सहारा
मेरे लिए एक संजीवनी बूटी सी
इनके रहते मेरे जीवन में
रहती मधुरता, सौंदर्यता और
बोधता
यह करती मेरे हृदय में
अमृत की धारा सा ही
रक्त संचार
यह सब मेरी जीवन रक्षक
मेरी जीवन वाहिनी।