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यह शर्म-ओ-हया का पर्दा

मेरे कमरे की

हर खिड़की पर पड़ा हुआ

एक पर्दा

इधर देखूं इधर भी पर्दा

उधर देखूं उधर भी पर्दा

आगे देखूं आगे पर्दा

पीछे देखूं पीछे पर्दा

जिधर देखूं चारों तरफ

पर्दा ही पर्दा

यह कमरा नहीं

एक नई नवेली

शर्माती हुई सी जैसे

कोई दुल्हन है

घूंघट से अपना चेहरा ढके हुए

इसकी आंखों पर लहराता हुआ

साफ तौर पर दिख रहा है

एक शर्म का पर्दा

काश घर की बहू बेटियों

की नजरों से यह शर्म-ओ-हया का

पर्दा कभी हटे नहीं

इनके घर के कमरे के

पर्दों की ही तरह

जिसमें यह सब रहती हैं

कोई पर्दा किसी के

हाथों फटे नहीं

न हो किसी की इज्जत

सरेआम बेआबरू

एक घर हमेशा

एक घर सा ही महफूज रहे

जिस्मफरोशी का कारोबार करता

कोई बाजार न बन जाये।