जिस किसी से
चाहे वह कोई जीवित हो या
मृत
कोई वस्तु हो या स्थान
दिल किसी का जुड़ा होता है
वह वहां की खूंटी से पूरे तौर पर बंधा होता है
उस खूंटी से बंधी डोर या
रस्सी को खींचते हुए
वह आगे बढ़ आता है लेकिन
जब भी याद की कोई बिजली
मन के आकाश में कौंधती है तो
उल्टे पांव उसी खूंटी के
आसपास एक भंवरे सा
मंडराने के लिए चला आता है
जो बीत गया
उसे याद करना
खुद को फिर एक फूल सा
तरोताजा करना
मन को कितने सुकून से भर
देता है
यह यादों का किला कभी
ढहे नहीं
अतीत के किस्से कहानियां,
वार्तालाप, संस्मरण आदि
सब काश इसकी बंद दीवारों से
टकराते रहें
इसकी फिजाओं में गूंजते रहें
और हवाओं के थपेड़ों से
बेतहाशा शोर मचाते रहें।