मैं खुश हूं कि
बहारें लौट आई हैं और
गुलशन को महका रही है
कुछ एक पत्ते पेड़ों की शाखों से
उतरकर
हवाओं संग बहकर
मुझसे लिपटकर
मेरा और बहारों का जैसे
स्वागत सा कर रहे हैं
मैं उनके लिए एक अपरिचित
फिर भी मुझे अपनी बाहों में भर
रहे हैं
यह प्रकृति की गोद भी
एक भगवान की हृदयस्थली है और
कहीं एक मां सी है
इसका स्पर्श मन में
शांति भरता है
आत्मा को सुकून देता है
और इस जीवन को सार्थक
करता है
अर्थपूर्ण बनाता है
इसे तृप्त करता है
एक सही दिशा देता है
किसी भंवर की लहरों के जाल में
फंसने से बचाता है
तन में, मन में
एक उमंग, एक जोश सा भर
देता है
मानव मन की चेतना सांसारिक
तनावों से मुक्त होकर
एक मयूर सी आनंदित होकर
नाच उठती है और
शरीर की शिराओं में
एक नव ऊर्जा का संचार
होता है।