उम्र का यह सफर
तय किया जिन अपनों के साथ
वह भी कभी भूले भटके मिलने पर परायों सा बर्ताव करते हैं
अपनापन किससे मिलेगा और
परायेपन का अहसास कब
एकाएक कौन करा देगा
इसका गणित समझना एक बहुत
कठिन कार्य है
जीवन की गाड़ी को
ऐसे ही चलने देते हैं
यह जो रुकेगी तो
इस दुनिया की भीड़ में से
कोई तो इसे फिर से चलाने के लिए
इसे धक्का लगा ही देगा
यह जीवन की बगिया
ऐसे ही कभी खिलती तो कभी
मुरझाती रहती है
यहां कुछ भी किसी को
अपनी ओर आकर्षित नहीं करता
किसी राह चलते का
दिल होगा तो
किसी पौधे को पानी दे देगा वरना जबरदस्ती किसी से करना तो
इस दुनिया का रिवाज ही नहीं।