आग तो बहुत है
मन के भीतर लेकिन
खुद ही पानी का छिड़काव करके
उसे शांत करती रहती हूं
मैंने इस आग के दरिया को
आगे बढ़ने से जो नहीं रोका
जो कहीं इसका रास्ता नहीं मोड़ा तो
यह तबाह कर देगी मेरे अपनों को
जिसमें रहूंगी मैं भी शामिल
शिकायतें हैं मेरी अनगिनत और
सब जायज
जिनको कहना भी चाहिए और
उनकी सुनवाई होकर
उन पर उचित फैसला भी मिलना
चाहिए लेकिन
यह ज्वाला जो भड़क गई और
एक हद से गुजर गई तो
सब कुछ निगल लेगी
यह आग सब कुछ जलाकर राख कर
देगी
यह आग मेरे भीतर
मेरे दिल में
मेरे मन में
मेरे तन बदन में
मेरी आत्मा के कण कण में जल रही है
यह मेरे जीते जी कभी नहीं बुझेगी
यह मेरी सोच की तरह ही पवित्र है
लेकिन
मैंने इसे स्थापित कर दिया है
एक अग्निकुंड में
यह आखिरी सांस तक जलती रहेगी
अपनी लड़ाई अकेली लड़ती रहेगी
किसी के प्यार और बलिदान को
याद करती रहेगी लेकिन
अपनी सीमायें नहीं तोड़ेगी और
न कभी बुझेगी।