चलो चले आज
दिलदार
चांद के पार नहीं
आसमान के रंगों के उस पार
सूरज के लालिमा बिखेरते सिंदूरी रंग के पार
आज हम चले नहीं
एक दूसरे का हाथ थामें
उड़ चले
घाटियों के शोख नजारों के उस पार
सब कुछ सुंदर होगा
एक रहस्यमयी आवरण लिये
कहीं कुछ भी बदसूरत, भद्दा या
बदशक्ल नहीं होगा
हम दोनों जो होंगे एक दूजे के साथ
मैं सूरज हूं तुम हो चांद सी
दोनों एक दूसरे के पूरक
इस धरती पर रहें या
किसी क्षितिज के पार
हम दोनों में यारी रहेगी
हमेशा ही एक ताजे फूलों के
नवयौवन में नहाये श्रृंगार के प्यार सी।