गुलाब के उपवन में खड़ी
मैं भी महकती हूं
एक गुलाब सी
उसका रंग मलकर अपने गालों पर
मैं भी हो जाती हूं
उसके रंग में रंग कर कभी गुलाबी तो कभी लाल सी
गुलाब की खुशबू मुझमें समाई है या
मेरी समाई है उसमें
यह राज दोनों में से कोई न जाने
प्यार करते हैं एक दूसरे को
मुस्कुराते हैं
महकते हैं
खिलखिलाते हैं
जीते हैं कुछ पल जिंदगी के
हंसी खुशी
यही दौलत है हमारी
यही हकीकत है हमारी
यही मंजिल है हमारे सफर की
गुलाब के फूलों का साथ
उसकी खुशबुओं का साथ
उसके रंगों का साथ फिर चाहे
डगर पर बिछे हों कांटे बेशुमार।