मेरा दिल
एक सागर है
यह देह एक जमीन पर खड़ी इमारत
मेरी रूह एक आसमान पर उगता
सूरज है
एक सृष्टि समाई है मुझमें
इस कायनात का एक
हसीन और शोख
सुनहरी मछली की काया सा ही
कोई रंग हूं मैं
मेरे सीने में कोई राज दफन
नहीं है
सब कुछ दृष्टिगोचर है
उजागर है
सर्वविदित है
एक सूरज के उजाले की तरह ही
हर दिशा के कोने कोने में
बिखरा हुआ है
मेरे खुद के भीतर तो ऐसा
कोई भी राज नहीं जो
मैं उसे किसी को बताकर
अपने बोझ को हल्का कर पाना
चाह रही हूं लेकिन
यह जरूर है कि
मैं खुद में एक बहुत बड़ा
कोई राज हूं
मैं कौन हूं
यह मैं समझ नहीं पा रही
जान नहीं पा रही
खुद को तलाशती रहती हूं पर
खुद को ही कहीं खुद से मिलवा
नहीं पा रही
खुद से मुलाकात कर नहीं पा रही
खुद को हासिल कर नहीं पा रही
खुद का परिचय प्राप्त कर नहीं पा रही
खुद के मकान का पता ढूंढ नहीं पा रही
हो सकता है कि
बहुत से ऐसे राज हों जो
मेरी नजरों से अभी कहीं
दूर हों
इस दुनिया के पार कहीं
किसी दूसरी दुनिया में निहित
मेरी आंखों में धूल झोंकते
एक धुंध की लकीर से ही
मिटते
ओझल होते कहीं
पाना है अभी तो
बहुत कुछ पाना है
बहुत कुछ सीखना है
समझना है
मन में उतारना है
हर राज पर से पर्दा उठाना है
बस हो जाये खुदा की
मेहरबानी तो
बहुत से असम्भव कार्यों को
सम्भव करके दिखाना है।