शाम का आसमान
आज मुझे धुंधला दिख रहा था
बारिश रुक रुक कर सुबह से हो रही थी
आसमान गीला और
सफेद,काले, स्लेटी, चितकबरे, मटमैले से
बादलों से पटा पड़ा था
कितना गिलगिला सा मौसम है
सर्दी भी अभी कहां गई है
यह मौसम भी कभी
एक फूल सा खिलता है तो
कभी मुर्झा जाता है
कहने को आसमान का
रंग दिन में नीला दिखता है लेकिन
किसी को जब फुरसत मिले तो
इसके पीछे हाथ धोकर पड़ जाना
किसी दिन
इसकी हरकतें जानने के लिए
देखना यह भी कितना शातिर है
कहीं से शरीफ नहीं
पल पल यह भी अपने रंग
इस दुनिया के लोगों की तरह ही
बदलता है
कुदरत भी सीख गई है कहीं
इंसानों के तौर तरीके
खुद को उनके बीच जिंदा रखने के
लिए
लोग खुद तक सीमित रहे ना
क्यों छेड़ते हैं इस कायनात के
तार
शाम के धुंधलकों में रंग
भरना तो इन्हें आता नहीं
बेमौसम की बरसात कर देते हैं और
मेरे शाम के आसमान को
कर देते हैं
खुद की तरह ही
नाशुक्रा
खुदगर्ज
बेसुरा
बेरंग और
फटे हुए बादलों के टुकड़ों से ढका पर
देखा जाये तो नंगा।