मैं और तुम
दो नहीं
एक हैं
मैं तुम्हारे ही अस्तित्व का एक अंश
तुम जो न होते तो मैं भी कहां होती
मैं तुम्हारी ही काया
मैं तुम्हारी ही माया
मैं तुम्हारी ही सृष्टि
मैं तुम्हारी ही दृष्टि
मैं तुम्हारी ही आत्मा
मैं तुम्हारा ही स्वरूप
मैं तुम्हारी ही जिज्ञासा
मैं तुम्हारी ही अभिलाषा
मैं तुम्हारे दिल की धड़कन
मैं तुम्हारी बगिया का फूल
तुम रहना चाहे इस जमीन पर
चले जाना बेशक इस आसमान से परे कहीं लेकिन
न कभी करना मुझे अपनी
आंखों से दूर
मुझे भुलाने की न तुम करना
कभी गलती से भी कोई भूल
मेरे दर्पण के अक्स में बसे रहना
बनकर मेरा बिल्कुल अपना सा ही
कोई जीवन के दरिया में बहता
भीनी भीनी सुगंध
हर दिशा में फैलाता
सुनहरे रंग की रोशनी से भरा
एक फूल।