कोहरा घना है
कोहरा मेरे सिर पर
एक बादलों के छत्ते सा तना है
कोहरे में चारों तरफ
कोई मंजर दिखता नहीं
कोहरे में एक कदम आगे बढ़ाना भी हो जाता है
दूभर
किसी को यह एक बर्फ की चादर सा फैला
शायद अच्छा लगता होगा लेकिन
मेरा तो कोहरे के शामियाने या तम्बू में
बहुत दम घुटता है
मैं तो भगवान से प्रार्थना करने
लगती हूं कि
इसे जल्द से जल्द छांट दे और
सूरज की किरणों को उगाकर उन्हें
चारों दिशाओं में फैला दे ताकि
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम
चारों दिशायें प्रकृति की गोद में
खेलती और सजी हुई दिखें
कोहरे में खुद को भी दर्पण में
पहचान न पाओ
ऐसा कोहरा किस काम का
जिसमे सुविधा कम और
दुविधा ज्यादा हो
प्रकाश कम
अंधकार अधिक हो
जीवन का सवेरा और बसेरा कम,
मौत का कहर घनेरा हो।