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मीनू, मनु और उनकी मनचाही एक मित्र मछली

मीनू ने अपने भाई मनु से

मंदिर के समीप बने मानसरोवर से मझधार में फंसी हुई

किसी मछली को छुड़ाकर लाने को कहा 

मनु मन ही मन करता मनुहार

निकल पड़ा घर से

पूरा जो करना था उसे यह

थोड़ा सा मुश्किल काम

मौसम मस्ताना था

मधुर था दिन

मीठी वाणी में कोयल कूक रही थी 

मिठास की चाशनी से ओतप्रोत

था उसका हर गीत

मंजिल आखिरकार आ ही

गई

एक मछली उसे देख

मझधार से जैसे अभी हो छूटी

किनारे तक अपनी आंखें

मटकाती आ गई

मनु ने मछली को भर

लिया जल से भरी ही एक

गागर में

घर पहुंचकर मीनू के हाथों में

थमाया मछली को और

महकाया एक महकते दर्पण

सा उसकी सांसों को

एक खुशी की लहर दौड़ रही थी

तीनों के चेहरों पर

मीनू और मनु को उनकी

मनचाही एक मित्र मछली मिल गई थी

कुछ पलों के लिए,

खेलने के लिए

माधुर्य से भारी यादों को

समेटने का जैसे यह मछली

एक सामान थी

मीनू और मनु के लिए।