ध्यान की मुद्रा में
बैठने से
कुछ देर के लिए ही सही पर
शांति मिलती है लेकिन
यह मन अशांत होता क्यों है
यह स्थिति क्या स्थाई है
कुछ भी तो इस जीवन में स्थाई नहीं
सब अस्थाई है
पलक झपकते ही तो मंजर बदल
जाते हैं
किसी ने क्या सोचा होता है और
क्या हो जाता है
किसी की तो क्षण भर में दुनिया
भी उजड़ जाती है फिर
क्या पाना चाहते हैं हम
किसकी चाह है हमें
किसके पीछे भागते रहते हैं
यह दौड़ किस लिए
दौड़ते हुए जब थक जाते हैं तो
कुछ समय के लिए विश्राम की
स्थिति में आना चाहते हैं हम
मन तो मानव का बड़ा चंचल
होता है
इसका चलना रुकेगा गर
तन थमे तो
शायद नहीं
क्या कभी किसी बच्चे को
परेशान होते या उसका निदान
पाने के लिए
ध्यान की मुद्राओं में बैठते हुए
देखा है
उम्र बढ़ने के साथ साथ
मानव मन जटिल क्यों होता
जाता है
सरल है सब
हम या कोई और
हमारे जीवन को कठिन बनाता है
इसे सरल बनाये रखना कुछ हद तक
हमारे हाथ में है
जो भी घटित हो रहा है उसे
महज एक नाटक समझें
व्यक्तिगत तौर पर
अपने ऊपर न लें
चाहे वह प्रहार आप पर ही क्यों न हो
मौन धारण कर लें
सुना अनसुना कर दें और
प्रतिक्रिया आवश्यक न हो तो
बिल्कुल ही न दें
कुछ भी वार सीधा अपने दिल पर न लें
नहीं तो अंजाम जो भी होगा
वह घातक ही होगा तो
उससे यथासंभव खुद को बचाये
रखें
क्या लेना है
क्या छोड़ना है
क्या धारण करना है
क्या उतारना है
क्या भीतर लेना है
क्या त्यागना है
क्या उपयोगी है
क्या हानिकारक है
सही निर्णय लेते रहें
खामोश होकर
समझदारी से
अपने हक में फैसले लेना भी
सीखें
अपना जीवन चक्र और
अपनी अदालत खुद चलायें
बिना ध्यान मुद्रा की स्थिति में
आये भी
मन में मौन धारण
करना
उसे नियंत्रित रखना
उसका मार्गदर्शन समय समय पर
करते रहना अति उत्तम कार्य
होता है।