होली का त्योहार
बिन तेरे
फीकी हर फुहार
रंग दूसरों पर पड़ता देख
अब लगता है अच्छा
लेकिन दूर से
खुद पर तो पानी का छींटा भी
कहीं से पड़ जाये तो
मन तेरी याद के जंगल में
खड़ा सा,
ठगा सा,
हारा सा,
टूटा सा,
एक पतझड़ में झडे़
पत्ते सा मुरझाया सा
सिर से पांव तक
जलकर बस राख हो
जाता है।