in

मन की बंद गली में

एक महल हो

जंगल में तो

लगता है

एक खंडहर सा

दुनिया हो भीड़ से भरी हुई और

दिल का मकान हो खाली तो

अपना साया भी लगता है

एक अजनबियों की बस्ती में

आवारा भटकता 

किसी अनजान सा 

हवाओं की सरसराहट अच्छी नहीं लगती 

खामोशी को तोड़ती कोई गूंज

मन की गहन निद्रा में लीन

वीणा के तार नहीं छेड़ती

न पेड़ के पत्तों की हरियाली

न फूलों की सुगंधित क्यारी

न कोई उपवन, न बन

न कोई आशियाना, न किसी का संग

मन की बंद गली में

प्रवेश नहीं पाता।