पहाड़ियों के पीछे से
सूरज की पहली किरण फूट रही है
अंधकार की चादर को
समेटती
अपने पैर पसारती
एक प्रकाश की किरण सी
हर सू लहराती
किरणों का एक जाल सा
है
प्रकाश का एक उदित होता
भंडार सा है
अंधेरा तो इसके समक्ष कहीं
टिक नहीं पा रहा
रोशनी का जिधर देखो
फैला हुआ एक अपार
दहकते शोलों का अंबार सा है
मन की चिड़िया भी
गा रही
फुदक रही
संग संग सवेरे की
लालिमा के साथ लहरा रही
प्रीत का रंग
चेहरे की आभा
को दमका रहा
एक आसमान में
स्थापित हो चुके
सूरज के शोभा मंडल
की तरह ही।