कितनी भी कोशिश करो कि
जो कहानी दिल में चल रही है
वह मेरे चेहरे पर कहीं दिखाई न पड़े लेकिन
क्या करूं
यह दुनिया के मुझसे ज्यादा
अनुभवी लोग सब कुछ भांप
लेते हैं
मैं परेशान हूं
बेचैन हूं
बोझिल आंखें लिए हूं
दिन-रात
सुबह शाम
हर समय
हर पल
यह मेरी आंखों की भाषा की
बनावट से पढ़ लेते हैं
मुझे खुद यह नहीं पता कि
मैं इतनी अशांत क्यों हो जाती हूं
प्यार जो मिलता है कहीं से तो
उसको भी ठुकराती हूं
यह तो मुझे भी नहीं मालूम कि
आखिर मैं अपने जीवन से क्या
चाहती हूं
लगता है जो मेरे हाथों से
छूट गया है
उसे वापिस पाना चाहती हूं
जबकि यह अच्छी तरह से जानती हूं कि
यह ख्वाहिश अधूरी ही रहेगी
यह एक असंभव कार्य जो ठहरा
न मैं खुद को समझ पा रही हूं
न इस दुनिया को कुछ
समझा पा रही हूं
जो पल बीत गये हैं उन्हें दोबारा
जीवित करना चाह रही हूं
एक बात तो लेकिन तय है
बेचैन रहना मेरी प्रकृति
बनती जा रही है लेकिन
मैं उसके साथ खुश होकर कहीं ताल से ताल मिला रही हूं।