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पेड़ पर पत्ते लगे हुए अच्छे लगते हैं

पेड़ पर पत्ते

लगे हुए अच्छे लगते हैं

जमीन पर पड़े हुए

पेड़ से टूटकर

गिरकर

बिखर कर

उससे जुदा होकर

उससे दूर जाते हुए

नहीं

हर दृश्य दिल को सुकून देता हुआ

अगले ही पल बदल क्यों जाता है

वह भी इतने वीभत्स तरीके से

दिल को चीरता हुआ

रुलाता हुआ

विस्मित करता

मन की सीमा से बाहर

समय की परिधि से बाहर

हाथों की पहुंच से बाहर

किसी भी तरह के नियंत्रण से बाहर

मन को भेदता

विच्छेदित करता

हाथ से सब कुछ जैसे हो निकलता

एक रेत सा फिसलता

दर्द फिर मन की गुफा में एक बर्फ की शिला सा जमता

मेरे तन को झकझोरता

मेरे मन को

मरोड़ता

मेरी आत्मा को

सिकोड़ता।