जीवन में सब कुछ घटित हो रहा हो
चाहे मन के मुताबिक फिर भी मन का आकाश
निराशा के काले बादलों से घिर ही जाता है
आशा – निराशा
निराशा – आशा
यह चक्र तो चलता ही रहता है
एक सामान्य बात है
एक आवश्यक बात यह है कि
निराशा के भाव को
थोड़ी कोशिश करके
खुद के मन से जल्द से जल्द विदा
करें
इसे एक लंबे समय तक लेकर न
बैठे रहे नहीं तो
यह हानिकारक है
कभी कभार थोड़ा बहुत
निराशा का होना कोई बड़ी बात
नहीं है
निराशा का सामना करना
भी जरूरी है तभी तो
आशा का दीपक
सफलता का
अपने घर की देहरी पर
जलता अच्छा लगेगा और
फिर कुछ ज्यादा ही खुशी देगा
और यह भी सबक देगा कि
जीवन में कुछ भी पाना
असंभव नहीं पर उसे
पाने के लिए भी
मेहनत करनी पड़ती है
चेष्टा करनी पड़ती है
संघर्ष करना पड़ता है और
निराशा को हराकर
आशा का हार फूलों का एक सुगंधित चंदन बन सा फिर
स्वयं को पहनाना पड़ता है।