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नारंगी रंग का सूरज एक दुल्हन सा

नारंगी रंग का

शाम का ढलता सूरज

कितना सुंदर प्रतीत होता है

एक दुल्हन की तरह ही

विदा लेता है

अपने बाबुल के घर से जैसे

मैं नहीं चाहती कि

यह कहीं जाये लेकिन

जिसको जाना होता है तो

वह जाता ही है

किसी के लाख चाहने पर भी

वह रूक कहां पाता है

चला जाये कोई

किसी को छोड़कर पर

एक शर्त पर कि

उसे लौटकर आना होगा

वह आहिस्ता आहिस्ता डूबता चला गया

मेरी आंखों से ओझल हो गया और

फिर नहीं दिखा

न जाने कहां खो गया

उसका एक नवयौवना सा सौन्दर्य  

एक पल में ही कहीं लुप्त हो गया

कुछ इस समय में

शेष बचा तो

मैं, मेरे कमरे की खिड़की और

नीला आसमान

जो बस कुछ क्षण पहले

नारंगी रंग का था सूरज के होने के

कारण और

अब है आसमानी रंग का

उसकी अनुपस्थिति में

धीरे धीरे यह भी अपना रंग खोने

लगेगा और हो जायेगा

स्लेटी फिर अंधकारमय काला

रात्रि में फिर चांद निकल आयेगा

पीला सा  

थोड़ी बहुत नारंगी आभा

खुद में समेटे

सुबह का सूरज सांझ वाला

फिर लौटकर आयेगा

मेरे द्वार

मेरी देहरी

मेरी खिड़की पर

चमकीला सा

सुरीला सा

नारंगी किरणों का ही प्रकाश लिये।