यूं तो निकलता
हर रोज सुबह
एक नया सवेरा लेकिन
मैं हर सुबह
पूछती अपने दिल से कि
क्या मेरे जीवन के अंधकार को
पीछे धकेलता यह
सच में है
मेरे लिए
एक नया सवेरा
अंतरात्मा से मुझे
उत्तर मिलता कि ‘नहीं’
समय का चक्र तो
मैं हूं या
नहीं हूं
ऐसे ही चलता रहेगा
मेरे जीवन में
नया सवेरा होगा
जिस पल मैं अपने
इस संसार में होने के
महत्व को समझ जाऊंगी और
जी जान से अपने उस
सपने को पूरा करने में
जुट जाऊंगी
नया सवेरा होगा
जब मुझे दिन निकलने और
सूरज के उगने का भी
इंतजार नहीं होगा
मैं तन मन धन से
अपनी साधना में इतनी लीन
होंगी कि
समय का मुझे आभास न
होगा
नया सवेरा होगा तब
जब मेरे मन में
आशा का एक दीपक
जलेगा
मैं खुद को प्रेरणा देती
रहूंगी
इसमें अपने ही प्रेम का तेल
भरती रहूंगी
किसी से कोई उम्मीद न
रखूंगी
बस अपने जीवन के पथ पर
नित नये संकल्प के साथ
आगे बढ़ती रहूंगी।