नदी तुम एक आसमान सरीखा ही
नीला दर्पण हो
शांत, निर्मल, पारदर्शी
तुम्हारे दो किनारे हैं
तुम दोनों को साथ लेकर चलती हो
कितनी भी बड़ी विपदा तुम पर पड़े पर
इन दोनों में से कभी किसी का हाथ नहीं
छोड़ती हो
तुम्हारे किनारों की नरम मिट्टी पर
उगी और फैली हुई हरी मखमली दूब और खरपतवार
तुम्हारे पानी की लहरों की बूंदों का
अपने तन पर स्पर्श पाकर
खुद को बहुत गौरवान्वित
महसूस करती हैं
तुम उन्हें छोड़कर जो पीछे हट जाती
हो और फिर
आगे बढ़ जाती हो तो
बहुत परेशान होती हैं
अपने दुख को वह अक्सर
मेरे कानों में आकर कहती हैं
नदी तुम समय के साथ
बहती जाती हो
पल पल बदलती हो
चलायमान हो तो
स्थिर भी हो
सबको साथ लेकर चलती हो और
अपने हाल पर अकेला भी छोड़ देती हो
तुम्हारा जल वही होता है
पर तुम्हारी लहरों में परिवर्तन
देखा जा सकता है
तुम नित दिन एक से दिखती हो पर
यह मेरा मन जानता है कि
तुम्हारा रूप परिवर्तित होता है
क्योंकि मैं गहराई से सोचती हूं
पर नदी तुम फिर भी अच्छी हो
बहुत अच्छी
तुम्हारी गुण एक से होते हैं और
सबसे बड़ी बात कि तुम किसी को
नुकसान नहीं पहुंचाती हो
तुम्हारे किनारे जो भी
पल भर बैठा और
सुस्ताया तो उसने
बहुत सुकून पाया
एक आत्मिक संतोष पाया
सुख पाया।