दिल की किताब खाली है और
इसकी कलम में स्याही लबालब भरी हुई
कितना कुछ लिखती रहती हूं
मैं इस किताब के पन्नों पर लेकिन
न जाने यह सब लिखे हुए हर्फ
कहां उड़ जाते हैं
एक धुएं की लकीर से
दिल की किताब यह पन्नों की न होकर जैसे हो
कोई एक अंगीठी सी
जिसमें धधकते हों कोयले
सुलगते हुए एक धीमी आंच पर
और धुएं के गुबार से छोड़ते हुए
राख के ढेर लगा देते हों
राख भी उड़ जाती हो कहीं किसी
बहती हवा के साथ
कोई कहानी
कोई निशानी
कोई पद चिन्ह जैसे बचते ही न हों
ऐसा लगता हो जैसे कभी कोई हुआ ही नहीं
उसकी कोई कहानी कभी थी ही नहीं
न वह लिखी गई, न कभी
पढ़कर सुनाई गई, न सुनी गई
न उसकी कहीं कोई याद बाकी हो
उसने कभी जन्म लिया भी था या नहीं
किसी का जीवन बस क्या एक भ्रम मात्र है
इसमें वास्तविक कुछ भी नहीं।