दर्पण न हो तो
मैं अपनी छवि को कहां निहारूंगी
शीशे से चमकते
पोखर में भरे
पारदर्शी पारे से तरल
पानी के ठहराव न हो तो
मैं प्रकृति के सौंदर्य के प्रतिबिंबों को
कहां तलाशूंगी
जमीन पर
जल के भराव के अभाव में
आसमान को
मैं जमीन पर फिर
कैसे उतारूंगी।