घर से जब निकली थी तो
सूखी हुई थी
वापिस जब आई तो
भीगी हुई थी
आसमान से जो बारिश बरस रही थी
उससे तन भीगा
तेरी भावनाओं ने जो छुआ
मेरे मन के मूर्छित बिंदुओं को
उन चांदनी में लिपटी
ओस की बूंदों से मन भीगा
आत्मा की आंखों से आंसू
छलक गये
जिस पल दर्द की गागर का
जल छलका।