दर्द की एक नदी सी
बह रही है
मेरे अन्तर्मन में
पूरे जोर शोर से
जोश खरोश से
पूरे होशो हवास में
पूरे संवाद में
तेज बहाव में
तेज संवेग में
अपने पूरे उफान पर है
यह तो एक तेज तूफान सा है
इसके रुकने का न कहीं कोई नामोनिशान है
मेरी तो देह एक नैया सी इस बार
इसके वेग संग कहीं दूर बह जायेगी या
शायद डूब जायेगी
मेरे तो यह हाथ न आयेगी
आसमान में जो तारा टिमटिमाता
दिखेगा
वह मेरी आत्मा का ही कोई
अक्स होगा
मुझे लेकर अकेले वह ही एक अंतिम कोई होगा जो
आगे के सफर में मेरा साथ निभाते हुए
मुझे लेकर वह दूर तलक मेरे साथ चलेगा।