गुलाब की खिलती
एक कली तुम
उड़ा रही गुलाल
बृज की हो राधा तुम
कृष्ण की हो मुरली
रंगों से झिलमिलाती
एक चिलमन तुम
आंखों में शोखी
होठों पर मुस्कान लिये
एक स्वर्ग की सुंदर अप्सरा तुम
कजरारे ये नैन तुम्हारे
काजल भरा हो जैसे
सीपियों में
गालों पे दहकते अंगारे
अंगीठी जली हो जैसे
चेहरे के दमकते अग्निकुंड में
मुस्कान तुम्हारी मारे लश्कारे
चाल पे तुम्हारी हर कोई जान लुटा दे
तुम रोज ही ऐसी दिखती हो या
आज रंगों के त्योहार पर
तुम भी खास हो गई हो
जलवे बिखेर रही
अपने हुस्न के
चारों तरफ
गुलाल उड़ाती
रंगों को गोल चक्कर में
घुमाती हवाओं में
उनमें नहाकर
दूसरों की तारीफ
सुन सुनकर इतराती
तुम भी
कहीं शर्म से लाल हो गई
इसकी उसकी छोड़ो
आज होली के विशेष अवसर पर
तुम खुद पर ही लगता है
कहीं बुरी तरह से फिदा हो गई।