दिल कहता है कि तुम यहीं हो,यहीं कहीं..
रसोई में गर्म चाय छानते समय
या दूध का बर्तन खाली करते हुए
आँगन में कपड़े फैलाते हुए
या बागीचे से फूल तोड़ते हुए, बहुत याद आते हो..
खिड़की से बाहर
चिड़िया को दाना चुगते देखते हुए
और फिर हथेली पर बारिश की बूँदें जमा करते हुए
गाछ पर अमरूद के नए फल लगता देख,उछलते हुए
या फिर अँधेरे में जुगनू को देख उत्साहित हो, चीखते हुए
चादरों की सिलवटें हटाते हुए
तबले के रियाज़ पर ताली से साथ देते से लगते हो
दिल कहता है कि तुम यहीं हो
मेरे पीछे-पीछे घूमते हुए से
जब मन बोझिल होता है
सोचती ही नहीं कि सब क्या कहेंगे
दे देती हूँ आवाज़ बेझिझक
पुकार लेती हूँ ज़ोर से- “पापा”!!!
अच्छा नहीं लगता कुछ भी,ज़रा भी
तुम बिन..