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तस्वीर: मनीषा अमोल द्वारा रचित कविता

तेरी तस्वीर जो दिल में बिठा रखी थी
उस पर धूल की मोटी परत जम चुकी है
एक अनकही अधूरी आस मन में बंधी थी
जिसकी डोर कब की कमज़ोर टूट चुकी है

एक सूनापन बस गया है खोखले से तन में
ख़ालीपन ने भी जम कर बसेरा कर लिया
निगाहों में अविरल तुम्हारी तलाश है जारी
जो सब की नज़रों में तमाशाई बन गया

होठों पे अल्फ़ाज़ छिपे दुबके बैठे हैं
माथे पे लकीरों का अनोखा मेला है
मेरे हृदय पे गहराई से जो हो रहा अंकित
एक अजीबोग़रीब नाकामी का ये रेला है

हर सुबह लेकर आती एक आशा की किरण
सुनहरी धूप में रोशन जब चेहरा चमकता है
एक रौनक सी छा जाती है उस मुरझाएपन में
ग़म के ग़ुबार का धुंध भी दूर छँट जाता है

एक नया सुर ताल कर देता है झंकृत
तुम्हारे आने की आहट जब इशारा देती है
जमी धूल को हटा रोशन दीदार हो जाये
जी सकूं जी भर के तुमसे प्यार हो जाये