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तन से बंधे तन में

तन का रिश्ता है तो

दिल में फूल खिलते हैं

मन का रिश्ता है तो

आत्मा के दर्पण टूटते हैं

मन के रिश्ते

मन से निभाये नहीं जाते

एक भारी भरकम पहाड़ के बोझ से प्रतीत होते हैं

तन की सुंदरता

आकर्षित करती है

एक चुंबक सी लोहे को अपनी

ओर खींचती है

तन से बंधे तन में

न मन है

न दिल है

न आत्मा है

इस तरह के संबंधों में

पशु प्रवृत्ति अधिक है

जिस्मानी प्यार है

मानवीय संवेदना कहीं नहीं

आत्मिक तृप्ति कहीं नहीं

दिल में प्यार भरी धड़कन कहीं नहीं

मन में प्रेम की अनुभूति कहीं नहीं

कहीं कुछ भी नहीं

सिवाय कंकाल पर लिपटे हुए

एक शीशे से चमकते हुए मांस के लोथड़े की दुकान के।