वह आदमी तो बहुत अच्छा है पर
तकदीर का मारा
अच्छे लोगों की तकदीर ज्यादातर खराब क्यों होती है
यह मुझे आज तक समझ नहीं आया
लाख कोशिशों के बावजूद
अपना मन सा कुछ जो हासिल कोई न
कर पाये तो
इसे उस शख्स की तकदीर का उससे रूठना
नहीं कहेंगे तो फिर भला क्या कहेंगे
तकदीर में जो लिखा होता है
वह तो होकर ही रहता है
तकदीर का लिखा कोई
कितनी जी तोड़ कोशिश कर ले पर
मिटा नहीं सकता
दरअसल हमेशा हर फैसला
हमारे हक में नहीं होता
तकदीर का रोना किसी के आगे
क्या रोना
मैं जिंदा हूं
हाथ पांव चलते रहें
अपनी तकदीर में बस इतना भर हो तो
यह भी क्या कम है।