देखो तो
कितनी सुंदर है यह प्रकृति
उसके दिलकश नजारे
उसकी सुगंधित फिजायें,
आसमान की विशालता और
दरिया के किनारे
हम तीनों भी तो
कहने को तीन देह पर
मन तीनों का आपस में
मिलता हुआ एक है
हम इंसान कहां
हम तो इस जमीन पर
एक शुद्ध आत्मा लिए विचरती
परियां हैं
यूं तो ढूंढने पर मिलेंगी
हममें भी कुछ कमियां लेकिन
हम उत्तम
अति उत्तम
निष्कलंक
दोषहीन
सबसे बढ़िया हैं
हमें इस दुनिया के लोगों से
कुछ नहीं चाहिए
हमारा प्यार तो बहुत है
हम सबमें बांटने के लिए
हम तो बस प्रकृति की उपासक हैं
प्रकृति के समीप रहकर
प्रसन्नता से अपना पूरा दिन
व्यतीत कर लेती हैं
इससे अधिक पाने की हमारी लालसा
नहीं
हमें न पंख चाहिए
न हमें कोई परिन्दा बनना है
न ही इसके आसमान के पार
जाने की अपनी कोई इच्छा है
एक दूसरे को देखकर
हम जीती रहें और
छोटी छोटी खुशियों को
एक बड़े उत्सव सा मनाती रहें
यही जीवन की अभिलाषा है।