तुम धरती की रानी थी
अब जल की मछली बन गई
बारिश की बौछारों में
रिमझिम फुहारों में
जल की बेशुमार धाराओं में
मोती सी बूंदों के रेशमी जालों में
तुम भीग भीगकर थक गई
आ जाओ इस पत्ते की छतरी के नीचे
अब तुम कि
मैं तुम्हें आश्रय दे दूं
तुम्हें सहारा दे दूं
पल भर का विश्राम दे दूं
तरोताजा होकर
खेल लेना फिर दोबारा से कि
अभी तो पूरा दिन पड़ा है
सूरज का भी आज सिर पर
पहरा नहीं कड़ा है
मौसम है सुहाना
जलमग्न है हर दिशा, हर नजारा
तुम आज जल में ही क्रीड़ा करती रहना
लेकिन थोड़ा सा सुस्ता लो
फिर अगले दौर का खेल शुरू करना।