दर्पण में देख
अपना चेहरा
खुद से पूछूं
एक सवाल कि
क्या यह चेहरा मेरा है
मैं हूं तो मेरा ही तो है
दर्पण भी कहे कि
तेरा ही तो है
एक ओस में भीगे
गुलाब के फूल सी
गुलाबी रंगत थी इसकी तो कभी
एक चंदन बन सा महकता था
एक घने पेड़ के पत्तों के पीछे छिपी
कोयल सा कूकता था
एक हवा की लहरों सा सरसराता था
जब देखो इसकी तरफ
तब तब मुस्कुराता था
एक तितली सा ही तो यह
हर फूल की क्यारी क्यारी
मंडराता था
चांदनी रातों में
चांद के संग जगता था
तारों की छांव में
उनकी तरह ही
टिमटिमाता था
बतियाता था
कोई राग वफा का गाता था
आज यह चेहरा
एक फूल तो है पर
मुरझा गया है
कोई इसे प्यार की बौछार से
भिगो दे तो
शायद यह खिल उठे और
खुद से और
दर्पण से कहे
देखो तो
मुझे फिर से मेरा अपना
पुराना चेहरा वापिस मिल
गया
मेरा चेहरा कहीं समय के
तेज बहाव में खो गया था
वह पुनः मेरे पास वापिस
आकर
मेरे चेहरे पर स्थाई रुप से
हमेशा के लिए
चिपक गया
स्थापित हो गया।