आज की रात एक चांदनी रात थी
खुली आंखों से मैं सपने देख रही थी और
तेरी याद मेरे साथ थी
मैं चांद को सोने के पलने में झूला रही थी
प्रीत की डोरी जो मेरे हाथ में थी
मैं खुले आकाश के दर्पण में अपना चेहरा निहार
रही थी
उसकी निगाह आज जो मुझ पर मेहरबान थी
मैं सितारों के जहां को जमीन पर उतार रही थी
मैं तन्हा थी और रात को जो जाग रही थी
मैं चांदनी की कलम से
रात की काली स्याही से
अपने ही कोरे बदन पर कोई पैगाम लिख रही थी
मुझे खुद से है मोहब्बत
यह बार बार दोहरा रही थी
चांदनी के रथ पर सवार थी
यह रात मेरी हमसफर थी और
मैं चांद की बाहों में गिरफ्तार थी
मैंने पलकों के पर्दे को गिराया
चांदनी रात के साये के शामियाने में
मेरी शबे रात थी ।