ख्वाहिश तो वह आस है


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ख्वाहिश

कभी कोई पूरी नहीं होती

वह एक सफर तय करती रहती है और

अधूरी ही रहती है

यात्रा के बीच में जो पड़ाव

आता है वहां पर वह

आंशिक रूप से पूरी होती  

प्रतीत होती है लेकिन

सच तो यह है कि वह

पूर्ण रुप से कभी पूरी नहीं होती

अंतिम पड़ाव पर भी नहीं या

अन्यथा किसी अन्य मुकाम पर भी

नहीं

जीवन तो एक वीरान रेगिस्तान है

रेगिस्तान के रेत के टीले से कुछ

अपनी झोली में भरना चाहो तो

रेत ही हाथ लगती है

उसे भी अपनी मुट्ठी में कैद करना

मुश्किल होता है

जितना उसे सहेजकर

रखना कोई चाहेगा उतनी ही

वह हाथ से फिसलकर दूर छिटककर

गिर जायेगी

रेत को समेटने की चाह दिल में

भरते रहो और फिर उसे

पकड़ने की कोशिश में

खुद से भी कहीं फिर दूर होते रहो

ख्वाहिश तो

इस जीवन रूपी रेगिस्तान में

भटक रहे किसी पानी को तरसते

प्यासे गले की वह आस है कि

उसे कोई पानी से लबालब जलाशय  

मिले और वह चलता जाये और

उसकी प्यास बढ़ती जाये पर वह

आखिर में कुछ भी न पाये और

अपनी प्यास को कहीं से कैसे भी

बुझा न पाये।


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