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ओ मेरे कन्हैया

यह दरवाजे के पीछे

कौन छिपा है

इस पर पड़ा था जो पर्दा

वह यकीनन हवा से तो नहीं हिला है

वह कौन है

जो करता है मुझे दिल से प्यार पर

आता नहीं उसे करना

सही वक्त पर अपने प्यार का इजहार

प्रेम का अंकुर फूट गया है

जो मन की माटी में तो

उसे सूरज की रोशनी से बचाना क्या

दिन में सूरज की तरह तो

रात को चांद की तरह

आसमान में दिखना चाहिए

यह कभी बादलों के तो

कभी सितारों के पीछे

छिप जाना क्या

यह चोर सिपाही का खेल

तुम मुझसे न खेलो

ओ मेरे कन्हैया

तुम दरवाजा खटखटा कर

मेरी चौखट का जो

कहीं छिप गये हो

अब सामने मेरे आ जाओ कि

मेरा दिल उछलकर एक गेंद सा

बाहर आने ही वाला है

एक चांद सा

बादलों के पीछे से निकलकर।