ऐ मेरे प्यारे
लाल गुलाब के फूल
तुम सूरज की गर्मी के ताप से
कितना तप गये हो
एक लाल दहकते अंगारे से ही
जल रहे हो
तुम्हारी त्वचा पर जगह जगह
काले धब्बे पड़ गये हैं
तुम बहुत उदास हो
रुआंसे हो
व्यथित हो
आसमान की तरफ
बार बार अपनी आंख ऊपर उठाकर देखते हो और
उससे बारिश के एक पानी की बूंद की आस
एक पपीहे की प्यास की तरह ही करते हो
तुम किसी को अपने पास बुलाकर
अपने मन की व्यथा की कथा को कह भी तो नहीं सकते
तुम्हारे बिना कहे
मैंने जान लिया तुम्हारे दिल का हाल
मैं जो तुम्हारे पास से गुजरी
मेरे बस में जो होता तुम्हें उठाकर
अपने साथ भीतर ले जाती
एक ठंडे स्थान पर लेकिन
तुम्हें उखाड़ना या
तुम्हें तोड़ना या
तुम्हारा स्थान बदलना
तुम्हारी आज्ञा के बिना तो
महापाप होगा
यह तो प्रकृति के खिलाफ होगा
यह अपराध तो तुम्हारी हत्या समान होगा
मेरे हाथ में तो इस समय बस
इतना भर है कि
जब तक बारिश नहीं होती
मैं तुम पर
तुम्हारी जरूरत के मुताबिक
जल का छिड़काव करती रहूं और
तुम्हें मुरझाने से बचाने में तुम्हारी
मदद करूं
यही ठीक है ना
कुछ और हो तो फिर
मेरे प्यारे लाल गुलाब के फूल
उसे मेरे कानों में मुझे जो भाषा
समझ में आ जाये
उसमें तुम कुछ कहना।