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ऐ मेरे प्यारे लाल गुलाब के फूल

मेरे बगीचे के

ऐ लाल गुलाब

तुम चांदनी रात में जो

रात भर ओस की शबनमी बूंदों से

नहाये हो और

सुबह के उगते हुए सूरज की किरणें जो

तुम पर पड़ रही हैं

उसमें कैसे झिलमिलाते से

मखमली लिबास सा जैसे हो पहना

अपनी सुंदरता पर कितना इतरा रहे हो

मंद मंद मुस्कुरा रहे हो

इत्र का सुगंधित सा एक दरिया जैसे बहा

रहे हो

तुम्हारी इन्हीं अदाओं पर तो मैं

मोहित हो जाती हूं

तुम्हें देखने तुम्हारे पास दौड़ी चली आती हूं

तुम्हारी कोमलता को स्पर्श करना चाहती हूं

तुम्हें छूने का मन है पर

डरती हूं कि तुम कहीं कुम्हलाकर

झड़ न जाओ

एक मक्खन की डली से तो लचकीले हो तुम

एक तितली भी तुम्हारे

खुशबुओं के जाल में फंसकर

देखो तो तुमसे मिलने आई है

तुम्हारे संपर्क में आकर

तुम पर एक हवा के भंवर सी

लहराई है

यह मिलन कितना सुखद लग रहा है

लेकिन यह क्या

तुम्हारा एक पत्ता

तुम्हारी काया का एक अंश

यह मार सह न पाया और

तुमसे अलग होता हुआ

गीली जमीन पर गिर गया

आहिस्ता आहिस्ता क्या तुम

ऐसे ही खत्म होते चले जाओगे और

मुझे फिर नहीं दिखोगे

यह प्रकृति का नियम सब पर

लागू होता है

मेरा इस पर नियंत्रण नहीं

मेरा क्या किसी का नहीं

कहीं भी कुछ स्थाई नहीं है

फूल पर बैठी तितली को पकड़ने के

लिए जैसे ही हाथ आगे बढ़ाओ तो

वह पकड़ में नहीं आती

उड़ जाती है

एक अंजान दिशा में

मुझे अकेला छोड़कर

वापिस भी नहीं आती लेकिन

ऐ मेरे प्यारे लाल गुलाब के फूल

मैं तुम्हें ऐसे बिखरने नहीं दूंगी

तुम्हारे अवशेषों को समेटकर

अपने सीने से चिपकाकर रखूंगी

जब तक कम से कम मैं जिंदा हूं

मेरा यह तुमसे वायदा है कि तुम्हारे

अस्तित्व पर मैं कभी कोई आंच

आने नहीं दूंगी।