सुनो मेरे शहर की सड़क
आज तुम मुझे
अपनी बगल से ही सटे
किसी गांव की सड़क पर
ले चलो
चलो हम दोनों एक बैलगाड़ी में बैठकर
फिर निकलते हैं
हम दोनों के बीच
यात्रा को तय करने के तरीकों में भी
काफी असमानता है लेकिन
कोई बात नहीं
तुम मुझे मंजिल तक तो पहुंचा ही दोगी
इस बात का तो मुझे पूरा यकीन है
रास्ते को तय करते समय
हम दोनों को जो अनुभव होंगे
जो दृश्य दृष्टि गोचर होंगे
जो वार्तालाप हम दिल खोलकर करेंगे
जो प्रकृति के संगीत का आनंद
हम साथ मिलकर उठायेंगे
जो इस शहर से गांव तक की यात्रा का आनंद
हम दोनों मिलकर लेंगे
यह सब दिल की बातें
हम गांव पहुंचने पर
गांव की सड़क को भी सुनायेंगे
गांव की सड़क कितनी तन्हा होगी
जब हम पहुंचेंगे उसके द्वारा
एक बिन बुलाये, अचानक से टपके मेहमान बनके तो
वह खुश तो अवश्य होगी
उसके पास भी तो सामान होगा
उससे गुजारिश करेंगे कि
वह अपनी पोटली खोलकर
हमें दिखा दे जैसे की जंगल,
बाग बगीचे, खेत खलिहान,
कृषक, मोर, चिड़िया, तोता,
नीलगाय, नीलकंठ,
पेड़ पौधों की हरियाली,
गांव की छोरियां मतवाली,
गांव के स्कूल और बच्चे,
गांव के मेले, वहां पड़े झूले,
नदियां, पहाड़ आदि
ऐसा ही बहुत कुछ
यह सब देखकर
एक सुंदर स्मृतियों का उपहार समेटकर
उसका धन्यवाद करेंगे और
आज्ञा लेंगे कि वह
अपने शहर, अपने घर, अपनी सड़क की ओर
जाने के लिए
मुझे विदा करे।