मैं तो
हर दिन ही
हर किसी के अच्छे के लिए
दिल से दुआ पढ़ती रहती हूं और
किसी को जानती हूं या
न जानती हूं
यह मानते हुए कि
सबको जानती हूं
जहां कोई दुर्घटना हुई हो
विघटन हुआ हो
किसी के हृदय में कोई शोक की लहर
लहराई हो
कहीं कोई दुख उपजा हो
कहीं किसी की आंख में आंसुओं की बाढ़
आई हो
श्रद्धा सुमन अर्पित करती रहती हूं
श्रद्धांजलि सभाओं का आयोजन
कौन सा ऐसा दिन होगा जहां
कहीं न कहीं होता नहीं होगा
मुझे तो आज भी जाना है
किसी गुरुद्वारे में
किसी को श्रद्धांजलि अर्पित करने
भोग डालने
मेरे जानकार के मिलने वाले हैं
थोड़ा बहुत मुझसे भी परिचित हैं
लेकिन मानो तो यह दुनिया है
सब प्राणियों का एक कुटुंब ही जहां
एक दूसरे के सुख दुख में जितना हो सको
शामिल हो जाओ तो यह विचार नेक है
श्रद्धांजलि किसी को दो तो दिल की
गहराइयों से
दिखावे भर के लिए नहीं
जीते जी भी सबसे प्यार करो
मरने के बाद भी किसी को याद करो, उसे प्यार करो,
उसे सम्मान दो
यही भाव किसी के लिए एक सच्ची श्रद्धांजलि हो
सकता है।