आकृतियां सी बनती दिख रही हैं
मुझे तो इस हरे भरे घनेरे जंगल में
पेड़ों को चीरता
सूरज का प्रकाश है तो
परछाइयां भी बन रही है यहां वहां
दरख्तों के तने भी सीधे खड़े थे जो
कभी
थक गये हैं
पक गये हैं
बूढ़े हो चले हैं
थोड़े से झुक गये हैं
टेढ़े-मेढ़े हो गये हैं
इनकी शाखायें और जड़ें भी इनका
साथ इन्हीं के आकार में ढलकर दे रही हैं
रास्ते भी कहीं पक्के हैं, कहीं कच्चे तो
कहीं पगडंडियों से संकरे तो कम चौड़े भी
एक विचित्रताओं से भरा किंतु
कोई मनोरम स्थल है यह कोई
मेरे दिल की गहराइयों सा ही बहुत
गहरा है
किसी में हिम्मत हो, दम हो,
समय हो तो
नाप कर देखो जरा इसका कद, भार, घनत्व, मूल्य और साख।