एक कली खिली
खिलकर फूल बनी
कुछ समय महकी
जीवित रही
खुशबू भरी सांसें भरी
दर्द में भी कुछ आहें भरी
फूलों भरी,
कांटों भरी तो
कभी पथरीली जीवन में राहें चुनी
सपने उसके हसीन थे
मंजिल भी वैसी ही
मौत उसकी रंगीन थी
जिंदगी कुदरती रूप लिए
श्वेत और श्याम
एक रेशम की डोर पर बैठ वह
मुस्कुराते हुए
कहीं फिसलती चली जा रही थी
बहुत दूर जा रही थी वह
खुद से ही छूटती जा रही थी
किसी के भी हाथ अब तो न आ रही थी वह।